Saturday, April 20, 2019

Sani Strota



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Namo  Krishnaaya Neelaya Shitikanthnibhaya cha

Namah Kalagni Rupaya Krintaya ca vai Namahahttps://www.dhevee.org/dasaratha-shani-stotram/,

Namo Nirmaansa dehaaya Deergha shmashru jataaya cha,

Namo Vishaala nethraaya Shushkodhara bhayaanaka

Namah parushagathraya sthularomaaya Vai namah

Namo nithyam Kshudhaarthaaya Nithyathapthaya Vai namah

Namah Kaalaagni rupaaya Krthaanthaka namoshthuthe,

Nameste Kotaraakshaaya Durnireekshyaaya Vai namah

Namo Ghoraaya Raudraaya Bheeshanaaya Karaaline

Nameste Sarva bhakshaaya Valeemukha namosthuthe

Surya putra namestesthu bhaskare bhaya dhayaka

Adho-drushte namasthubhyam vapuhshyaama namosthuthe

Namo Manda-gathe thubhyam nisthrinshaaya namo namah

Thapasa dagdha-dehaya nithyam yogarathaya cha

Namesthe gyaana nethraya kashyapathmaja sunave

Thushto dadasi Vai raajyam rushto harasi Thathkshanaath

Devaasura manushyaashcha pasupakshisareesrpaah

Thvaya vilokithaah saure dainyamaashu Vrjanti cha

Brahmaa shakro yamashchaiva rishayah saptha-tharakaah

Rajya bhrashtaashcha t’e sarve thava drishtyaa vilokithaah

Deshaa nagara graamaa dweepashechai vaadrayasththaa

Raudra Dhrushtyaa t’u ye drushtaah kshayam gacchanti thath kshanaath

Prasaadam Kuru me saure varaartheham thavaashrithah

Saure kshamasvaaparaadham sarvabhutha hithaayacha

 




नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।

नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।१।।


    नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।
    नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।२।। 


नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ  वै नम:।
नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।३।।


    नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम: ।
    नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।४।।


नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च ।।५।।


    अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते ।
    नमो मन्दगते तुभ्यं निरिाणाय नमोऽस्तुते ।।६।।


तपसा दग्धदेहाय नित्यं  योगरताय च ।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ।।७।।


    ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज  सूनवे ।
    तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ।।८।।


देवासुरमनुष्याश्च  सिद्घविद्याधरोरगा: ।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।९।।


    प्रसाद कुरु  मे  देव  वाराहोऽहमुपागत ।
       एवं स्तुतस्तद  सौरिग्र्रहराजो महाबल: ।।१०।।




हिन्दी पद्य रूपान्तरण

हे श्यामवर्णवाले, हे नील कण् वाले।
कालाग्नि रूप वाले, हल्के शरीर वाले॥
स्वीकारो नमन मेरे, शनिदेव हम तुम्हारे।
सच्चे सुकर्म वाले हैं, मन से हो तुम हमारे॥
स्वीकारो नमन मेरे।
स्वीकारो भजन मेरे॥
हे दाढी-मूछों वाले, लम्बी जटायें पाले।
हे दीर्घ नेत्रवाले, शुष्कोदरा निराले॥
भय आकृतितुम्हारी, सब पापियों को मारे।
स्वीकारो नमन मेरे।
स्वीकारो भजन मेरे॥
हे पुष्ट देहधारी, स्थूल-रोम वाले।
कोटर सुनेत्र वाले, हे बज्र देह वाले॥
तुम ही सुयश दिलाते, सौभाग्य के सितारे।
स्वीकारो नमन मेरे।
स्वीकारो भजन मेरे॥
हे घोर रौद्र रूपा, भीषण कपालि भूपा।
हे नमन सर्वभक्षी बलिमुख शनी अनूपा ॥
हे भक्तों के सहारे, शनि! सब हवाले तेरे।
हैं पूज्य चरणतेरे।
स्वीकारो नमन मेरे॥
हे सूर्य-सुततपस्वी, भास्कर के भय मनस्वी।
हे अधो दृष्टि वाले, हे विश्वमय यशस्वी॥
विश्वास श्रध्दा अर्पित सब कुछ तू ही निभाले।
स्वीकारो नमन मेरे।
हे पूज्य देव मेरे॥
अतितेज खड्गधारी, हे मन्दगति सुप्यारी।
तप-दग्ध-देहधरी, नित योगरत अपारी॥
संकट विकट हटा दे, हे महातेज वाले।
स्वीकारो नमन मेरे।
स्वीकारो नमन मेरे॥
नितप्रियसुधा में रत हो,
अतृप्ति में निरत हो।
हो पूज्यतम जगत में, अत्यंत करुणा नत हो॥
हे ज्ञान नेत्र वाले, पावन प्रकाश वाले।
स्वीकारो भजन मेरे।
स्वीकारो नमन मेरे॥
जिस पर प्रसन्न दृष्टि, वैभव सुयश की
वृष्टि।
वह जग का राज्य पाये, सम्राट तक कहाये॥
उत्ताम स्वभाव वाले, तुमसे तिमिर उजाले।
स्वीकारो नमन मेरे।
स्वीकारो भजन मेरे॥
हो व दृष्टि जिसपै, तत्क्षण विनष्ट होता।
मिट जाती राज्यसत्ता, हो के भिखारी रोता॥
डूबे न भक्त-नैय्या पतवार दे बचा ले।
स्वीकारो नमन मेरे।
शनि पूज्य चरण तेरे॥
हो मूलनाश उनका, दुर्बुध्दि होती जिन पर।
हो देव असुर मानव, हो सिध्द या विद्याधर॥
देकर प्रसन्नता प्रभु अपने चरण लगा ले।
स्वीकारो नमन मेरे।
स्वीकारो भजन मेरे॥
होकर प्रसन्न हे प्रभु! वरदान यही दीजै।
बजरंग भक्त गण को दुनिया में अभय कीजै॥
सारे ग्रहों के स्वामी अपना विरद बचाले।
स्वीकारो नमन मेरे।
हैं पूज्य चरण तेरे॥









Sani Strota

ॐ शनैश्वराय नमः॥,ॐ शनैश्वराय नमः॥,ॐ शनैश्वराय नमः॥
१- शनिवार को हनुमान मन्दिर में पूजा उपासना कर तथा प्रसाद चढायें.
शनि देव को शांत करने के लिए वेदों में प्रायः हनुमान जी की पूजा बताए गई है , अगर इन्शान हनुमान जी की पूजा करे तो शनि अपने आप ही शांत रहता है
२-शनिवार को सरसों के तेल में अपनी छाया देख कर दान करना चाहिए
३ -मध्यमा अंगूली में काले घोडे की नाल का छल्ला धारण करें.
४- घर में पूजा स्थान में पारद शिवलिंग रखें. तथा उसके सामने प्रतिदिन महामृ्त्त्युंजय मंत्र का जाप कर्रें.
५- स्वास्तिक अथवा अन्य मांगलिक चिन्ह घर के मुख्य द्वार पर लगायें.
६- शनि स्तोत्र का प्रतिदिन श्रद्धापूर्वक जाप करें.
७- काले घोडे की नाल की अंगूठी शनिवार को मध्यमा अंगुळी में धारण करें.
८ – प्रतिदिन शनि महा मंत्र का जाप करने से घर में सुख शांति रहती है और शनि देव सभी मनोरथ को पूरा करते है मंगलमय वातावरण बना रहता है ,
९- शनिवार के दिन नारियल अथवा बादाम को जल प्रवाह करें.
१०- शनिवार को साबुत उडद किसी भिखारी को दान करें.या पक्षियों को ( कौए ) खाने के लिए डाले ,
११- पीपल के पेड पर जल चढायें.या हनुमान जी को मंगल और शनिवार के दिन सिंदूर चढ़ाएं


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