Namo Krishnaaya Neelaya Shitikanthnibhaya cha
Namah Kalagni Rupaya Krintaya ca vai Namahahttps://www.dhevee.org/dasaratha-shani-stotram/,
Namo Nirmaansa dehaaya Deergha
shmashru jataaya cha,
Namo Vishaala nethraaya Shushkodhara
bhayaanaka
Namah parushagathraya sthularomaaya
Vai namah
Namo nithyam Kshudhaarthaaya
Nithyathapthaya Vai namah
Namah Kaalaagni rupaaya Krthaanthaka
namoshthuthe,
Nameste Kotaraakshaaya
Durnireekshyaaya Vai namah
Namo Ghoraaya Raudraaya Bheeshanaaya
Karaaline
Nameste Sarva bhakshaaya Valeemukha
namosthuthe
Surya putra namestesthu bhaskare
bhaya dhayaka
Adho-drushte namasthubhyam
vapuhshyaama namosthuthe
Namo Manda-gathe thubhyam
nisthrinshaaya namo namah
Thapasa dagdha-dehaya nithyam
yogarathaya cha
Namesthe gyaana nethraya
kashyapathmaja sunave
Thushto dadasi Vai raajyam rushto
harasi Thathkshanaath
Devaasura manushyaashcha
pasupakshisareesrpaah
Thvaya vilokithaah saure
dainyamaashu Vrjanti cha
Brahmaa shakro yamashchaiva rishayah
saptha-tharakaah
Rajya bhrashtaashcha t’e sarve thava
drishtyaa vilokithaah
Deshaa nagara graamaa dweepashechai
vaadrayasththaa
Raudra Dhrushtyaa t’u ye drushtaah
kshayam gacchanti thath kshanaath
Prasaadam Kuru me saure varaartheham
thavaashrithah
Saure kshamasvaaparaadham
sarvabhutha hithaayacha
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।१।।
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।२।।
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।३।।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम: ।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।४।।
नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च ।।५।।
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते ।
नमो मन्दगते तुभ्यं निरिाणाय नमोऽस्तुते ।।६।।
तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च ।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ।।७।।
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे ।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ।।८।।
देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा: ।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।९।।
प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत ।
एवं स्तुतस्तद सौरिग्र्रहराजो महाबल: ।।१०।।
अतृप्ति में निरत हो।
वृष्टि।
Sani Strota
शनि देव को शांत करने के लिए वेदों में प्रायः हनुमान जी की पूजा बताए गई है , अगर इन्शान हनुमान जी की पूजा करे तो शनि अपने आप ही शांत रहता है
२-शनिवार को सरसों के तेल में अपनी छाया देख कर दान करना चाहिए
३ -मध्यमा अंगूली में काले घोडे की नाल का छल्ला धारण करें.
४- घर में पूजा स्थान में पारद शिवलिंग रखें. तथा उसके सामने प्रतिदिन महामृ्त्त्युंजय मंत्र का जाप कर्रें.
५- स्वास्तिक अथवा अन्य मांगलिक चिन्ह घर के मुख्य द्वार पर लगायें.
६- शनि स्तोत्र का प्रतिदिन श्रद्धापूर्वक जाप करें.
७- काले घोडे की नाल की अंगूठी शनिवार को मध्यमा अंगुळी में धारण करें.
८ – प्रतिदिन शनि महा मंत्र का जाप करने से घर में सुख शांति रहती है और शनि देव सभी मनोरथ को पूरा करते है मंगलमय वातावरण बना रहता है ,
९- शनिवार के दिन नारियल अथवा बादाम को जल प्रवाह करें.
१०- शनिवार को साबुत उडद किसी भिखारी को दान करें.या पक्षियों को ( कौए ) खाने के लिए डाले ,
११- पीपल के पेड पर जल चढायें.या हनुमान जी को मंगल और शनिवार के दिन सिंदूर चढ़ाएं
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